हाइलाइट्स
15 महीने बाद भी रूस यूक्रेन युद्ध अब भी जारी है.
उम्मीद के मुताबिक इस दौरान रूस जितना कमजोर होना था हुआ नहीं है.
रूस हर मामले में अब भी उतना ही शक्तिशाली है जितना कि पहले था.
रूस यूक्रेन युद्ध में सतह तौर पर भले ही रूस ताकतवर लगता है, हकीकत ऐसी है नहीं. छोटे से देश यूक्रेन पर अमेरिका और यूरोप अरबों डॉलर खर्च कर उसे हथियार दे रहे हैं जिससे रूस यूक्रेन को तबाह ना कर सके और खुद इस युद्ध में हार जाए. इस युद्ध में यूक्रेन की जीत नाटो, अमेरिका और यूरोप की जीत मानी जाएगी. अमेरिका की अगुआई में पश्चिमी देशों ने रूस को कमजोर करने के लिए युद्ध की शुरुआत से ही कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं. इनसे रूस पर विपरीत असर भी हुआ है. लेकिन एक सवाल जो अब उठता है कि आखिर युद्ध के 450 दिन गुजरने के बाद भी रूस की स्थिति किसी भी तरह से कमजोर क्यों नहीं हुई है. अब तो जर्मन खुफिया एजेंसी ने इसकी पुष्टि कर दी है.
मजबूत बने हुए हैं पुतिन
जर्मनी की विदेशी खुफिया एजेंसी बीएडी के मुताबिक रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का तंत्र अब भी बहुत मजबूत है और उसमें किसी तरह की कोई दरार तक नहीं आई है. डीडब्ल्यू की रिपोर्ट के मुताबिक बर्लिन के फेडरल एकेडमी फॉर सिक्यूरीटी पॉलिसी में बीएनडी प्रमुख ब्रूनो काल ने ऐसा कहा है.
सबसे बड़ा सवाल
काल का यहां तक कहना है कि नए सैनिकों की भर्ती के साथ रूस युद्ध को अब लंबी खींचने में सक्षम हो गया है और उसके पास हथियारों की कोई कमी नहीं है. यह दावा यह सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर 15 महीने पहले पुतिन ने जब विशेष सैन्य अभियान के नाम पर यूक्रेन पर हमला बोला था, तब से नाटो के सहयोग से भले ही यूक्रेन टिका रहा हो, लेकिन रूस कमजोर क्यों नहीं हुआ जबकि उस पर तो पश्चिमी देशों ने अच्छे खासे प्रतिबंध लगाए थे.
संकेत तो ऐसे ही हैं
जर्मनी खुफिया एजेंसी का यह दावा कोई अनुमान नहीं हैं. रिपोर्ट के मुताबिक जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर यूरोपियन स्टडीज के प्रोफेसर और यूरोपीय मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर गुलशन सचदेवा भी इससे सहमति जताते हैं. उनके मुताबिक हालात और अभी मिल रहे संकेत तो बीएनडी के दावे को मजबूत ही करते दिख रहे हैं. प्रतिबंधों के बाद भी रूस की अर्थव्यवस्था कायम है, पुतिन के खिलाफ किसी तरह का बड़ा विरोध तक नहीं है.

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले की ही तरह मजबूत दिखाई दे रहे हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
हो क्या रहा है
हकीकत तो यह है कि युद्ध के फौरन बाद जो रूसी मुद्रा रुबल में बहुत ज्यादा गिरावट आई थी, उससे रूस ना केवल उबर चुका है बल्कि वह पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो गई है. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर वह अपने पुराने संबंधों को कायम रखे हुए है उसके दोस्त बढ़े नहीं तो कम भी नहीं हुए हैं. पश्चिमी देशों को रूस के अलग- थलग करने के सारे प्रयास बेकार होते ही दिख रहे हैं.
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अब नहीं दिख रही हैं समस्याएं
पहले अंदाजा लगाया जा रहा था कि युद्ध लंबा खिंचेगा. लेकिन अब तक की उपलब्धियों की बात करें तो इस मामले में पश्चिमी देश रूस का कुछ भी नहीं बिगाड़ नहीं सके हैं जैसा कि वे समय समय पर दावा करते रहे हैं. बीएनडी का भी यही अवलोकन है. जिस तरह केसमस्याएं शुरुआत में रूस के लोगों ने देखी, अब ऐसा कुछ भी दिखाई सुनाई नहीं दे रहा है. पश्चिमी मीडिया भी इस पर बहुत “सक्रिय” नहीं है.

यूक्रेन की अभी युद्ध में तबाही कम नहीं हुई है उसके युद्ध में टिके रहने के अलावा उसकी कोई उपलब्धि नहीं है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
और फिर यूक्रेन?
दूसरी तरफ यूक्रेन में भारी तबाही साफ दिखाई दे रही है. रूस के ताबड़ तोड़ हमलों की खबर समय समय पर मीडिया में छाई रहती हैं. नुकसान का आंकलन हो नहीं रहा है. शायद जल्दबाजी होगी. लेकिन पश्चिमी देश आखिर क्या चाह रहे हैं यह एक पहेली बनती जा रही है. यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति समय-समय पर हो रही है. यूक्रेन टिका हुआ है यह गर्व केसाथ दावा किया जा रहा है.
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इस युद्ध को लेकर कई सवाल हैं जो गंभीरता पैदा करते हैं. जैसे अलर रूस किसी तरह से यूक्रेन पर कब्जा करले तो क्या युद्ध खत्म हो जाएगा या फिर पश्चिमी देशों को रूस पर हमला करने का खुला मैदान तो नहीं मिल जाएगा. क्या इस वजह से रूस कभी यूक्रेन में कीव के नजदीक आकर पीछे हटता है तो कभी दूसरे इलाके में. अभी रूस के कब्जे वाले डोनेट्स्क, लुहान्स्क, जापोरिज्जिया और खेरसॉन को रूस ने कुछ महीने पहले अपना हिस्सा बना लिया है, लेकिन वहां रूस क्या कर रहा है, पश्चिमी देशों खास तौर से अमेरिका की रणनीति क्या है. क्या वह अभी केवल युद्ध को फैलने से रोकने पर ही केंद्रित है या फिर उसका इरादा कुछ और?
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FIRST PUBLISHED : May 26, 2023, 10:19 IST