कौन हैं नैंसी पेलोसी? आखिर क्यों उनके नाम से चिढ़ता है चीन, जानिए कारण


हाइलाइट्स

1991 में चीन के तियानमेन चौराहे पर लोकतंत्र के समर्थन में नैंसी पेलोसी फहरा चुकी हैं बैनर
कांग्रेस के सदस्यों की ओर से मानवाधिकार के मुद्दे पर नैंसी ने चीन के उपराष्ट्रपति हु जिंताओ को पत्र सौंपे थे
पेलोसी अपनी वेबसाइट पर ‘चीन में मानवाधिकारों के लिए एक सशक्त आवाज’ नाम से एक ब्लॉग भी चला रही हैं

वॉशिंगटन. अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी (Nancy Pelosi) का विमान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Chinese President Xi Jinping) की लगातार दी जा रही चेतावनी के बावजूद ताइवान (Taiwan) पहुंच चुका है. जबकि चीनी सरकार पहले ही जो बाइडेन (Joe Biden) को धमका चुकी है कि उन्हें उकसाने का काम आग से खेलने जैसा होगा और इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. पेलोसी की यह यात्रा बीते 25 सालों में किसी अमेरिकी अधिकारी की उच्चतम स्तरीय यात्रा बताई जा रही है.

अमेरिका 1970 से ही ‘वन चाइना ’ की नीति (One China Policy) को बनाए रखता आया है और उसने ताइवान को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता दी है. लेकिन इसके साथ ही वह ताइवान के साथ भी अनाधिकारिक संबंध बनाए हुए हैं. यह एक ऐसी रणनीति है जिसे जानबूझकर अस्पष्ट रखने के लिए जाना जाता है. बीजिंग ताइवान को चीन का हिस्सा मानता है और अक्सर उसे धमकाता रहता है. चीन ने कभी भी सैन्य बल के जरिए इस द्वीप पर कब्जे की बात से इनकार नहीं किया.

पेलोसी के ताइवान आने से चीन को क्या परेशानी
चीन को लगता है कि ताइवान में किसी वरिष्ठ अमेरिकी शख्सियत का होना साफ तौर पर इस ओर इशारा करता है कि अमेरिका ताइवान की स्वतंत्रता के लिए उसका समर्थन करेगा. चीन के विदेश मंत्री और प्रवक्ता झाओ लिजियांग कह चुके हैं कि अगर यह यात्रा होती है तो चीन कड़े कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगा. उन्होंने कहा कि पेलोसी का ताइवान जाना जहां एक तरफ चीन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर असर डालेगा वहीं इस कदम से चीनी-अमेरिकी संबंधों पर भी प्रभाव पड़ेगा.

चीन और ताइवान के बीच तनाव का इतिहास
चीन के दक्षिणपूर्व तटीय इलाके से करीब 160 किमी दूर ताइवान द्वीप है, जिसके सामने चीन का फुझोउ, क्वाझोउ और झियामेन शहर हैं. कभी यहां किंग राजवंश का साम्राज्य था, लेकिन 1895 में यह जापान के कब्जे में चला गया था. दूसरे विश्व युद्ध में जब चीन ने जापान को हराया उसके बाद इस द्वीप का नियंत्रण चीन के हाथों में पहुंचा. इसके बाद कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग ने मेनलैंड चाइना (Mainland China) में गृहयुद्ध में जीत हासिल की, उस दौरान 1949 में राष्ट्रवादी कुओमिन्तांग पार्टी के नेता च्यांग काई-शेक ताइवान भाग गए थे.

च्यांग काई-शेक ने इस द्वीप पर रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार स्थापित की और 1975 तक उसके राष्ट्रपति रहे. बीजिंग ने कभी भी ताइवान के स्वतंत्र अस्तित्व को नहीं स्वीकारा और वह हमेशा से उसे चीन का अभिन्न अंग मानता रहा है. वहीं ताइवान का तर्क है कि आधुनिक चीनी राज्य की स्थापना 1911 की क्रांति के बाद अस्तित्व में आई, और ताइवान उस राज्य या पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का हिस्सा नहीं था जो कम्युनिस्ट क्रांति के बाद स्थापित हुआ था. तभी से यह राजनीतिक तनाव जारी है, चीन और ताइवान के बीच आर्थिक संबंध भी रह चुके हैं. ताइवान के कई प्रवासी चीन में काम करते हैं और चीन ने ताइवान में निवेश भी किया है.

ताइवान को लेकर अमेरिका और दुनिया की राय
अमेरिका ताइवान को अलग देश के तौर पर मान्यता नहीं देता है, दुनिया के महज 13 देश ही ताइवान को एक देश के रूप में मान्यता दे रहे हैं जिसमें मुख्यतौर पर दक्षिण अमेरिका, कैरेबियन, ओशिनिया और वेटिकन देश शामिल हैं. अमेरिका ने इस मामले को लेकर अपनी रणनीति हमेशा अस्पष्ट रखी है. जून में राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा था कि ताइवान पर अगर हमला होता है तो अमेरिका उसकी रक्षा करेगा लेकिन उसके तुरंत बाद यह भी स्पष्ट किया गया कि अमेरिका ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन नहीं करेगा. जबकि अमेरिका का ताइपे के साथ किसी तरह का कोई औपचारिक रिश्ता नहीं है. वह ताइवान का सबसे अहम अंतरराष्ट्रीय समर्थक है और हथियारों का आपूर्तिकर्ता रहा है.

इससे पहले 1997 में रिपब्लिकन पार्टी के हाउस स्पीकर न्यूट गिंगरिच ने ताइवान की यात्रा की थी और उस दौरान भी चीन को कार्रवाई के लिए चेताया था. इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित लेख के मुताबिक गिंगरिच ने न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया था कि, हम चीन को बस यह समझाना चाहते हैं कि हम ताइवान की रक्षा करेंगे.

लेकिन तब से अब तक हालात काफी बदल गए हैं. चीन आज विश्व राजनीति में बहुत मजबूत ताकत बनकर उभरा है. चीनी सरकार ने 2005 में एक कानून पारित किया था जो बीजिंग को सैन्य कार्रवाई के लिए अधिकार देता है. हाल के सालों में ताइवान की सरकार बस यही कहती आई है कि इस द्वीप की करीब 2 करोड़, 30 लाख जनता को अपना भविष्य चुनने का अधिकार है और किसी तरह का हमला होने पर वह अपनी रक्षा करेगा. 2016 से ताइवान ऐसी पार्टी को चुनता आ रहा है जो आजादी की समर्थक है.

चीन पर क्या राय रखती हैं पेलोसी
हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की स्पीकर (अमेरिकी कांग्रेस का निचला सदन) नैंसी पेलोसी, उपराष्ट्रपति के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति के पद की दूसरी दावेदार हैं. अपने राजनीति सफर में वह अक्सर चीन की आलोचना करती रही हैं. खासकर अगर मानव अधिकारों के उल्लघंन की बात हो तो उन्होंने हमेशा चीन को आड़े हाथों लिया है. पेलोसी की वेबसाइट पर ‘चीन में मानव अधिकारों के लिए एक सशक्त आवाज’ नाम के खंड में सालों से वह अपने रुख को सूचीबद्ध करती रही हैं. बीते तीन दशकों से अमेरिकी में कांग्रेस की ओर से मानवअधिकारों के लिए सबसे उग्र और सबसे मजबूत शख्स के तौर पर उनका ही नाम सबसे ऊपर रहा है.

‘चीन में लोकतंत्र के लिए मरने वालों के लिए’
1991 में पेलोसी और अन्य राजनेता चीन की यात्रा पर गए थे. इस दौरान उन्होंनें तियानमेन चौराहे (Tiananmen Square) पर हुई हिंसा के दो साल पूरा होने पर यहां एक बैनर लहराया जिस पर लिखा था ‘चीन में लोकतंत्र के लिए मरने वालों के लिए.’ 2002 में उन्होंने चीन के उप राष्ट्रपति हु जिंताओ को कांग्रेस के सदस्यों की ओर से मानव अधिकारों के मुद्दे को उठाते हुए 4 पत्र सौंपे, चूंकि वह अमेरिका की एक आधिकारिक यात्रा पर थे इसलिए उन्होंने उन पत्रों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. 2009 में स्पीकर पेलोसी ने चीन की यात्रा की और राष्ट्रपति हु जिंताओ के हाथों में राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए एक पत्र सौंपा.

तिब्बत में अमेरिकी कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व
पेलोसी ने तिब्बत का मुद्दा भी उठाया है. “दलाई लामा के साथ दशकों पुरानी व्यक्तिगत मित्रता साझा करने के बाद, 2007 में उन्होंने दलाई लाम को कांग्रेस का स्वर्ण पदक प्रदान किया था. उनकी वेबसाइट के मुताबिक, नवंबर 2015 में, उन्होंने तिब्बत में अमेरिकी कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया, तिब्बती छात्रों और नेताओं से मुलाकात की, और “तिब्बती स्वायत्तता और तिब्बती भाषा, संस्कृति और धर्म के संरक्षण के लिए” तिब्बत की वकालत की.

Tags: Nancy pelosi, Taiwan



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